महिला जागृति

सम्पन्नता में योगदान

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हम चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र सम्पन्न, समृद्ध और धनवान बने, किन्तु देश की ५० प्रतिशत जनसंख्या पुरुषों के गले का पत्थर बनकर लटकी हुई है। हमारे देश की नारी आर्थिक उपार्जन में पुरुष की सहयोग नहीं है, वह पर्दा प्रथा, रूढ़िवादिता और परम्पराओं के कारण उलटे पुरुष के लिए आर्थिक उन्नति में बाधक ही सिद्ध हुई है। वह मात्र परिवार वृद्धि और खर्च का माध्यम बनी हुई है देश के रूढ़िवादी परिवारों में एक कमाता है और छह खाते हैं। यह आर्थिक संकट का युग है। मध्यम- वर्गीय परिवारों की स्थिति तो सबसे अधिक शोचनीय होती है। उसकी अकेले की कमाई परिवार का खर्च पूरा करने में सर्वथा अपर्याप्त सिद्ध होती है।

शिक्षित, समझदार नारी पति का बोझ हल्का कर सकती है। अविकसित नारी न तो समय का सही विभाजन ही कर सकती है और न काम करने का सही ढंग उसे आता है। इस प्रकार उसका समय और श्रम अनुत्पादक और श्रम अनुपयोगी ही कार्यो में बरबाद कर, पुरुष के भार को बढ़ा देती है। यदि उसे विकसित होने का अवसर दिया जाय तो पुरुष को उस भार से मुक्ति तो मिल ही जाय। अर्थ व्यवस्था में भी उसका योगदान मिलने लगे। सुयोग्य गृहिणी अर्थ उपार्जन में सहयोग कर सकती है। साथ ही घर के निरर्थक अपव्यय और बर्बादी रोककर समझदारी से कम साधनों से ही अधिक काम निकालकर घर के अर्थ सन्तुलन को बना सकती है। उद्योगों के द्वारा पर्याप्त आय सम्भव है।

जापानी महिलाएँ इसका अनूठा उदाहरण हैं। घर- घर में लगे छोटे कुटीर उद्योगों में संलग्न रहकर वे अपने समय का उपयोग घर- परिवार को और सम्पूर्ण राष्ट्र को सम्पन्न बनाने में करती हैं। हमारे देश में एक पुरुष के लिए एक नारी की श्रमशक्ति खप जाती है। सारे दिन रोटी- बच्चों में ही लगी रहती है। न तो वह अपनी योग्यता बढ़ा सकती है और न उसके श्रम का ही उपयोग हो पाता है।

परिवार और समाज की आर्थिक प्रगति के लिए नारी का सुयोग्य और समुन्नत होना आवश्यक है। यदि इस सन्दर्भ में यही उपेक्षा बरती जाती रही तो गरीबी और बेकारी हमारे गले में बँधी ही रहेगी, उससे पीछा छूट न सकेगा।

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