युग परिवर्तन कब और कैसे ?

खोखली पाश्चात्य सभ्यता

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दूर के ढोल सुहावने वाली बात बहुत करके सही सिद्ध होती है ।। चन्द्रमा रात्रि के समय कितना सुन्दर लगता है, कविगण उसका बखान करते नहीं थकते ।। पर उस तक पहुँचने वालों ने उसकी कुरूपता का भयानक वर्णन किया है ।। गड्ढे और टीले वाली जमी, कहीं अतिशय गर्मी ,, कहीं चरम शीत, न हवा, न पानी, सुरक्षा उपकरणों के बिना कोई एक क्षण के लिए भी नहीं ठहर सकता ।।

सर्प कितना सुन्दर लगता है ।। धूप में उसकी चाल चमक और आकृति देखते ही बनती है ।। जिन्हें उनकी असलियत मालूम नहीं वे बच्चे उसे पकड़ने दौड़ते हैं ।। गलती से उनमें से कोई पकड़ बैठे तो वह खिलौना क्षण भर में डस लेगा और प्राणों का अन्त कर देगा ।। प्राचीन काल में ऐसी विष कन्यायें होती थीं जिनका रूप यौवन देखते ही मनुष्य मोहित हो जाता था किन्तु उनके सत्संग में आते ही विष कन्या आजकल पाश्चात्य सभ्यता के रूप में देखी जा सकती है ।।

अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड जैसे देशों की खाली भूमि पर कब्जा कर लेने के उपरान्त गोरे लोगों को वहाँ प्रकृति सम्पदा का आधिपत्य करने का अवसर मिला और देखते- देखते थोड़े ही दिनों में माल- माल हो गये ।। विज्ञान के विकास का भी यही युग था ।। अधिक कमाई करने वाले यंत्रों का निर्माण उसी पैसे से हुआ ।। उपनिवेशों में माल खपाने का अवसर मिला ।। इस प्रकार कुछ ही शताब्दियों में छप्पर फाड़कर दौलत उन पर बरसी ।।

इस उपलब्ध सम्पन्नता का उपयोग कहाँ हो इसके लिए संकीर्ण मनोवृत्ति को सुविधा सम्पादन और विलासिता के बढ़ते हुए साधन यह दे ही काम दृष्टिगोचर हुए ।। वे भारत क अनुयायी थोड़े ही थे जो अपनी बुद्धि वैभव से संसार के कोने- कोने में बिखर कर वहाँ के निवासियों को सुविकसित और सुसंस्कृत बनाने का प्रयास करते और इसके लिए स्वयं कष्ट सहते ।।

पाश्चात्य देशों के हाथ में पहुँची विपुल सम्पदा ने जहाँ शिक्षा, चिकित्सा जैसे उपयोगी साधन बढ़ाये वहाँ विलासिता की सामग्री जुटाने में भी कमी न रखी ।। यह लम्बे समय का इतिहास नहीं हैं ।। अभी दो शताब्दियों मुश्किल से बीती हैं कि वे क्षेत्र विलासिता की चरम सीमा को छूने लगे ।। उनकी रुचि के व्यंजन पकवान और स्वच्छन्द यौनाचार, आकर्षक सज- धज उन क्षेत्रों के सर्व साधारण को उपलब्ध हो गई ।। वाहन के लिए मोटर, परस्पर वार्ता के लिए टेलीफोन, घर बैठे सिनेमा देखने के टेलीविजन जैसे अनेकानेक उपकरण हर किसी को उपलब्ध हुए ।। अन्धाधुन्ध आमदनी का आखिर उपयोग भी और किन कामों में होता ।।

यह उमंग भरी लहर थोड़े ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाने लगी ।। परिवार टूटे ।। विलास की स्वच्छन्दता में पति- पत्नी का साथ रहना ही पर्याप्त था ।। न अभिभावकों को सन्तान से कुछ आशा और न सन्तान के लिए अभिभावकों का कोई बड़ा त्याग ।। बूढ़ों के लिए सम्पन्न देशों में मवेशीखाने बन गये और बच्चों के लिए अनाथालय ।। सन्तान और अभिभावक के बीच रहने वाली आत्मीयता ही एक प्रकार से समाप्त हो गई ।।

यौन स्वेच्छाचार में हर किसी को नवीनता की ललक रहने लगी ।। फलतः तलाकों का एक खिलवाड़ जैसा प्रचलन हो गया ।। विवाह एक चिह्न पूजा है जिसे करने के उपरान्त दोनों साझीदारों में से कोई नहीं जानता कि यह समझौता कितने दिन चल सकता है और कितने दिन बाद टूट जायेगा ।। उठती उम्र की लड़कियाँ भी देखती हैं कि अधिक लाभदायक सौदा कौन- सा है? स्त्री की भाँति पुरुष भी इसी फिराक में रहते हैं ।। नया सुहावना के फेर में आज विवाह- कल तलाक का मखौल बनता रहता है ।। पर कुछ ही साल में स्थिति उलट जाती है ।।

 
स्त्रियों की ढलती आयु आते ही उन्हें अपने लिए घोंसला ढूँढ़ना पड़ता है ।। उन्हें कोई मुश्किल से ही कुछ दिन अपनी डाल पर बैठने देता है ।। दोनों ओर से मजबूरियाँ सामने आ जाती हैं तभी कुछ ऐसा भरोसा बनता है कि शायद टिकाऊपन बना रहे ।। दाम्पत्य जीवन में हर घड़ी उसी तरह चौकन्ना रहना पड़ता है मानों किसी ठग जालसाज के साथ दिन गुजारने पड़ रहे हों ।। सन्तान और अभिभावकों का रिश्ता तभी तक है जब तक पंख नहीं उगते ।। लड़के हों या लड़कियाँ जब कुछ कमाने लायक हो जाते हैं, अपना अलग घोंसला बनाते हैं, ऐसी दशा में मुसीबतों के समय कोई किसी से आशा अपेक्षा नहीं करता ।। आजीविका को ही सब कुछ मानकर चलना पड़ता है ।।

ऐसी दशा में अनिश्चितता और उद्विग्नता की मनःस्थिति बनी रहती है ।। इस तनाव को हल्का करने के लिए नशेबाजी ही एक मात्र अवलम्बन नशेबाजी ही एक मात्र अवलम्बन रह जाती है ।। सिगरेट, शराब और मादक औषधियाँ दोनों ही जीवन की आवश्यकता बन जाती हैं ।। आधी रात नाटक, केबल, देखने में बीत जाती है, शेष आधा समय नींद की नशीली गोलियाँ लेकर झपकियाँ लेते हुए बितानी पड़ती है ।। भोजन के लिए आधी पारियाँ होटलों में बितानी पड़ती हैं ।। घर पर खाने वाले या तो बहुत गरीब या बहुत अमीर होते हैं ।।

अब नौजवानों का एक नया शौक बना है- किसी की भी जान लेना, पिस्तौल तानकर जेब खाली करा लेना या दो तीन का गिरोह बनाकर किसी अकेले या दुकेले की गरदन मरोड़ देना ।। यह धन्धा अच्छी आमदनी का भी है और अपनी चतुरता का रौब दिखाने का भी ।। नई पीड़ी के आवारा लोगों के लिए दादागीरी सुलभ सी बनती जा रही है और अच्छे खासे नफे की भी ।। जो लड़के माँ बाप से पटरी नहीं बैठाते और पढ़ाई में मन न लगने के कारण अधकचरे रह जाते हैं उन्हें बड़े लोगों जैसा काम तो मिलता नहीं ।। हल्की नौकरी में शानदार ढंग से गुजारा कैसे चले इस समस्या का हल उन्हीं की बिरादरी के आवारा लोग आसानी से सिखा देते हैं ।। गिरोह बनते देर नहीं लगती है ।। पहले कमजोर लोगों पर हाथ साफ करते हैं, बाद में जिनकी भारी जेब देखते हैं, उनका पीछा करते हैं ।।

वे भले आदमी जिनका पैसों से वास्ता है और लफंगों की करतूतें सुनते रहते हैं, उन्हें हर समय भयभीत और चौकन्ना रहना पड़ता है ।। आगे पीछे, दाँयें- बाँयें देखकर चलते हैं, कहीं कोई दाता तो पीछे नहीं लग रहा है ।। इन गिरोहों में लड़कियाँ आसानी से साझीदार हो जाती हैं वे सेक्स प्रलोभन से किसी को इधर से उधर ले जाती हैं और गिरोह के दूसरे लोग मौका देखते ही शिकार दबोच लेते हैं ।।

ऐसी घटनायें जिन्होंने सुन रखी है, वे फूँक- फूँक कर पैर रखते हैं, उन्हें हर घड़ी खैर मनाते, जान बचाते हुए जहाँ जाना है, वहाँ पहुँचते हैं ।। घर पहुँचते हैं ।। घर पहुँचते ही भीतर से ताला बन्द कर लेते हैं और किसी के आवाज देने पर तब तक नहीं खोलते जब तक कि आवाज को पहचानी हुई और विश्वस्त होने की सम्भावना न हो जाय ।।

अखबारों में चोरी डकैती की घटनायें बड़े अक्षरों में छपती रहती हैं ।। तीसरे युद्ध के लिए बने हथियारों और अन्तरिक्ष में टूट पढ़कर कमजोर तबियत के लोग सोचने लगते हैं कि मानो वह सभी मुसीबत उन्हीं के लिए रची गई है और कल नहीं तो परसों उन्हीं के सिर पर गिरेगी ।। यह स्थिति अपने देश के बड़े शहरों में भी देखी जा सकती है ।।

ऐसी स्थिति में प्रगति भौतिक दृष्टि से कितनी ही क्यों न हो गयी हो, ये व्यक्ति आदिम युग में जीते हुए कहे जायेंगे ।। जहाँ गति व मति का समुचित समन्वय नहीं होता वहाँ यही स्थिति होती है ।। अच्छा हो सभ्यता के विकास के साथ संस्कृति का भी विकास हो ।। अन्त में सुसंस्कारिता पनपे ।। तब ही वास्तविक प्रगति मानी जा सकती है ।। आज की खोखली पाश्चात्य सभ्यता हम सब के लिए एक सबक है ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? पृ. 2.69)

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