निर्मल गंगा जन अभियान


गायत्री परिवार ने गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक २५२५ किमी की दूरी तय करने वाली पापनाशिनी माँ गंगा को स्वच्छ करने का दायित्व उठाया है। राष्ट्रीय स्तर पर निर्मल गंगा जन अभियान का शुभारंभ किया जा चुका है, गंगा के दोनों तटों की ओर बसने वाले लोगों में जन जागरण किया जा रहा एवं भारत की जीवनदायिनी माँ गंगा को निर्मल करने में सहयोग करने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। गंगोत्री से गंगासागर तक के तीन चरण के कार्य पूरे हो चुके हैं –

लक्ष्य

सदानीरा निर्मल गंगा

उद्देश्य


  •     जल ही जीवन है अतः जल की स्वच्छता और जैव विविधता के संरक्षण का संगठित प्रयास।
  •     लोकमाता जाह्नवी’ गंगा लोकमाता है अतःगंगा पुत्रों को अपनी माँ  के प्रति कर्तव्यों का स्मरण कराना एवं पालन हेतु प्रेरणा।
  •     स्त्रोतसामस्मि जाह्नवी सभी जल स्त्रोत गंगा हैं अतः देष के सभी जलस्त्रोतों तक अभियान का विस्तार।
  •     हम बदलेंगे, युग बदलेगा की भावना से जन जन को व्यत्किगत तौर पर भागीदार बनाना।
  •     हरियाली चूनर गंगा के आचंल में सघन वृक्षारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का प्रयास।

गंगा मात्र एक जल धारा नहीं, वरन् भारतवर्ष की जीवन धारा है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, दर्शन और अघ्यात्म का पवित्र प्रवाह है गंगा। आधे भारत को अपने आँचल में समेटे गंगा जन- जन में देवत्व, घर- घर में संस्कृति, तट- तट पर पवित्रता और श्री- समृद्धि बिखेरती, सागर को गौरव प्रदान करती हे। देवात्मा हिमालय के गर्भ से सागर तक प्रवाहमान सुरसरि देव संस्कृति के उद्गम और विकास की साक्षी रही है।

वर्तमान संदर्भ में यह विचारणीय प्रश्न है कि ऐसी जीवनदायिनी नदी को हमने अपने स्वार्थ और अंधे विकास की खातिर मरणासन्न स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जिस देश में सत्य सिद्ध करने हेतु गंगा कर सौगंध ली जाती हो, तथा जिसके जल की कुछ बूँदें मोक्ष की वाहक बनती हो, उसी नदी के जल को आज हमने पीने और नहाने योग्य भी नहीं छोड़ा। वात्सल्यमयी माता गंगा आज भी अपने प्रवाह से हमें आशीर्वाद देने के लिए हमारे द्वार से बिना किसी शिकायत के सतत बह रही है। माता अपना कर्तव्य निभा रही हैं, किन्तु हम उसके पुत्र बदले में उसे क्या दे रहे है? जिस नदी को हमें आदर और सम्मान देना चाहिए था, उसमें हम अपने नगर का मैला, उद्योगों
का कचरा, नालों का पानी, शव इत्यादि बहा रहे हैं, मानो वह एक नदी नहीं, कूड़ादान हो। सभ्यता की जननी से यह असभ्य व्यवहार अब असहनीय हो गया है। इसी भावना से आहत हो, अखिल विश्व गायत्री परिवार ने प्रारम्भ किया है एक देशव्यापी अभियान- निर्मल गंगा जन अभियान।

माॅँ गंगा के पाँच अंचल

अभियान की सफलता हेतु सम्पूर्ण 2525 किमी. लम्बे प्रवाह की पाँच अंचलों में विभक्त किया गया है-

  •     भागीरथी अंचल- गोमुख से हरिद्वार तक
  •     विश्वामित्र अंचल- हरिद्वार से कानपुर तक
  •     भारद्वाज अंचल- कानपुर से बनारस तक
  •     गौतम अंचल- बनारस से सुल्तानगंज तक
  •     रामकृष्ण अंचल- सुल्तानगंज से गंगासागर तक

अभियान के पाँच चरण-

अभियान की विविधता एवं निरंतरता को ध्यान में रखते हुए पाँच चरण तय किये गये हैं:-

  1. प्रथम- सर्वेक्षण से गंगा सागर तक विस्तृत सर्वेक्षण।
  2. द्वितीय- "गंगा संवाद" (गंगा की व्यथा- कथा) का तटीय नगरों- ग्रामों में आयोजन।
  3. तृतीय- गंगा अमृत कुंभ जन जागरण यात्रायें (जन- जागरण, स्वच्छता, हरी चूनर- वृक्षारोपण हेतु पद यात्रायें)
  4. चतुर्थ- सहयोग आन्दोलन- नियम पालन हेतु जन सहयोग जागरण।
  5. पंचम- दस वर्श तक शुद्धि एवं संरक्षण हेतु निरंतर प्रयास- पुरुषार्थ।

गोमुख से गंगासागर तक पाँच प्रयास- पाँच परिणाम

जल शुद्धि

  1. निर्मल गंगाजल गंगा जल की निर्मलता बनाये रखने के लिए जन- जन को पे्ररणा देना।
  2. निर्माल्य (बासी फूल) विसर्जन पर रोक, डस्टबिन प्रयोग का प्रचलन अभ्यास में लाना।
  3. साबुन- शैम्पू का प्रयोग न होने देना।
  4. प्लाॅस्टर आॅफ पेरिस की मूर्तियों के विसर्जन पर रोक एवं इस हेतु तटों- घटों के समीप "गंगा कुण्डों" का निर्माण।
  5. शहर, आश्रम, गाँवों के सीवेज मिलने पर रोक (पानी का आंशिक उपचार वाले हौज), सोक पिट "सोख्ता गड्ढा" एवं रोटलिंग टैंक का निर्माण।
  6. उद्योगों का प्रदूषित पानी गंगा में मिलने से रोकने हेतु उद्यमियों को जागरूक करना। सरकारी रोक हेतु आन्दोलन।
  7. जल परीक्षण कर प्रदूषण से जनता को अवगत कराना। जन- जागरण, फिल्म प्रदर्शन, पोस्टर, दीवार लेखन, पत्रक वितरण, प्रदर्शनी, नुक्कड़ नाटक, जन सभा। पर्यावरण, गंगा सेवक सेना का गठन।


तट शुद्धि : हरे- भरे स्वच्छ

तटों/ घाटों की नियमित स्वच्छता, शौचालयों का निर्माण, तथा तटों पर सघन वृक्षारोपण का क्रम जन भागीदारी से करना।

  1. तटों पर मल- मूत्र विसर्जन पर रोक एवं सुलभ शौचालयों का निर्माण (सरकारी, संस्थागत सहयोग से)
  2. नियमित स्वच्छता का प्रबंध
  3. घाटों पर स्वच्छता कार्यक्रम
  4. तटों कर मरम्मत
  5. तटों पर वृक्षारोपण- त्रिवेणी, पंचवटी का तटीय मन्दिरों में रोपण
  6. हरी चूनर चढ़ाना (प्रवाह प्रभावित क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण)
  7. शवदाह के उचित स्थान तट से दूरी पर
  8. गंगा की गोद में निर्माण/खनन पर रोक
  9. पाॅलिथिन एवं नशा निषेध,
  10.  डस्टबिन/वर्मी कल्चर के पिट निर्माण
  11. तटों को पानी से धोने के स्थान पर झाडू एवं पोंछे का प्रयोग
  12. तीर्थ पुरोहितों से शुद्धि हेतु अपील, तीर्थ पुरोहितों की विशेष भागीदारी, तीर्थ पुरोहितों को संदेशवाहक, तीर्थ रक्षक बनाना
  13. गंगा स्वयंसेवी सेना- तटों की सुरक्षा- सेवा, रखरखाव।


तटीय ग्राम शुद्धि- आदर्श ग्राम तीर्थ

तटीय ग्रामों में गोवंश आधारित कृषि का पुनर्जीवन तथा स्वच्छ, स्वस्थ, व्यसनमुक्त, सुशिक्षित, स्वावलम्बी ग्राम निर्माण हेतु प्रयास।

  1. रासायनिक खेती का हतोत्साहन
  2. गौपालन एवं गौ आधारित खेती को बढ़ावा
  3. निस्तार के पानी का प्रबंध, सोक पिट (सोख्ता गड्ढा) तैयार करना
  4. तटों पर वृक्षारोपण
  5. व्यसनमुक्त, स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित, सुसंकारी, स्वावलम्बी, सेवा- सहकार से भरा- पूरा गाँव
  6. घूरे (कचरे के ढेर) से सोना बनाओ, काम को प्रोत्साहन
  7. प्रदर्शनी एवं फिल्म प्रदर्शन।
  8. ग्रामों में गंगा सेवक मण्डलों का निर्माण।


सच्चा तीर्थ सेवन- तीर्थ गरिमा की रक्षा

हजारों श्रद्धावान् तीर्थयात्रियों को इस अभियान से जोड़ने और उन्हें इस संदेश को जन- जन तक पहुँचाने में भागीदार बनाने का प्रयास

  1. यात्रियों के बीच पर्व- त्योहारों पर पत्रक, माइक, सम्पर्क द्वारा जन- जागरण
  2. स्नान तिथियों पर जन- जागरण एवं दूसरे दिन सफाई
  3. अभियान में तीर्थ यात्रियों का सहयोग प्राप्त करना
  4. व्यसनमुक्ति एवं दीवार लेखन में सहयोग
  5. तीर्थ सेवन क्यों और कैसे? गोष्ठियाँ एवं कार्यशालाएॅँ।

दूषित जल स्त्रोत प्रबन्धन- स्वच्छ सदानीरा गंगा

सहायक नदियों/जल स्त्रोतों को स्वच्छ बनाये बिना गंगा को पूर्णरूपेण निर्मल नहीं बनाया जा सकता, अतः गंगा की सहायक नदियों पर भी छोटे- छोटे अभियानों का क्षेत्रीय स्तर पर आयोजन

  1. भागीरथी जलाभिषेक के माध्यम से समीपवर्ती/सहायक जल स्त्रोतों की शुद्धि
  2. सूचना के अधिकार एवं जनहित माध्यम का उपयोग
  3. सत्याग्रह करना।

सभी प्रयासों को 10 वर्ष तक श्रद्धा भरी तत्परता के साथ चालू रखना, ताकि यह सब कार्य जन- जीवन के स्वभाव में आ जायें।

गंगा पुत्रों से आत्मीय अनुरोध
सोचो! समझो! और उचित करो!!


न करने योग्य


  •     घर की कचरा युक्त पूजन सामग्री, बासी फूल गंगा में न डालें।
  •     तट पर पाॅलीथीन का प्रयोग न करें।
  •     गुटका एवं कपड़े धोने का साबुन प्रयोग न करें।
  •     तटों और घाटों पर मल- मूत्र का त्याग न करें।
  •     प्लास्टर आॅफ पेरिस की बनी एवं जहरीले रंगों से रॅँगी प्रतिमाओं का विसर्जन न करें।
  •     तटीय खेतों में रासायनिक खाद, कीटनाशक का प्रयोग न करें।
  •     मल- मूत्र युक्त पानी गंगा में प्रवाहित न होने दें।
  •     शहर का गंदा नाला एवं उद्योगों का गंदा- जहरीला पानी प्रवाहित होने से रोकें।
  •     प्लास्टिक के दोनों में दीपदान न करें।
  •     मृत पशु, शव, अधजले शव गंगा में प्रवाहित न करें।

करने योग्य

  •     घर की पूजन सामग्री, बासी फूल एवं अन्य सामग्री की खाद बनाएॅँ।
  •     पाॅलीथीन के स्थान पर कागज के बैग उपयोग करें।
  •     मल- मूत्र त्याग हेतु शौचालयों का प्रयोग करें।
  •     पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों की ही स्थापना करें।
  •     रासायनिक खाद, कीटनाशक के स्थान पर गोबर, केंचुआ खाद एवं गौमूत्र से बने कीटनाशक का प्रयोग करें।
  •     गंदे पानी के सोक पिट (सोख्ता गड्ढा) बनाएॅँ।
  •     अच्छा हो आटे के दिये बनाकर घाट पर ही दीपदान करें, जल में न बहायें।

काश अभी न चेते भाई- तो महॅँगी पडे़गी माॅँ से जुदाई।

माॅँ तो करूणामूर्ति है, सब सह रही है, किन्तु उसके दुःख से प्रक्रुति नाराज हो रही है। अच्छा हो कि प्रकृति का दण्ड भोगने से पहले हम चेत जायें, सपूत बनकर माॅँ के प्रति अपना कर्तव्य निभायें।


संकल्प (गंगा की सौगन्ध)

आओ करें संकल्प और शपथ लें गंगा की कि
....हम अपने द्वार, नगर, ग्राम, संस्थान, आश्रम से गंगा को प्रदूषित नहीं करेंगे तथा दूसरों को भी प्रदूषित करने से रोकेंगे।

       जो जल मैला किया उसे हम फिर से शुद्ध बनायेंगे।
पुनः पुण्यतोया गंगा की पावनता लौटायेंगे।।

भाव- भरा आह्वान

आओ हम सब एक बार पुनः भागीरथी प्रयास करें और पुण्यतोया गंगा की गौरव गरिमा को पुनर्स्थापित करें। माॅँ भारती के पुत्रों के पुरुषार्थ, संकल्प एवं मोक्ष की आधार माॅँ भागीरथी गंगा पर आये सामयिक संकटों के निवारण हेतु " निर्मल गंगा जन अभियान" में भागीदारी हेतु आपको सादर आमंत्रण है। गाँव−गाँव, नगर- नगर में गंगा सेवक मण्डल का निर्माण का इस कार्य की निरंतरता बनाये रखें तो हमारा यह पवित्र उद्देश्य अवश्य ही पूर्ण होगा एवं हम हमारी आने वाली पीढ़ी को विरासत में फिर से वही पतित पावनी गंगा भेंट कर सकेंगे।








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