समय दान

दान अर्थात् देना; ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं को जागृत विकसित करना और उससे औरों को भी लाभ पहुँचाना। यही है पुण्य परमार्थ- सेवा स्वर्गीय परिस्थितियाँ इसी आधार पर बनती हैं।वस्तुतः: समयदान तभी बन पड़ता है, जब अंतराल की गहराई में, आदर्शों पर चलने के लिए बेचैन करने वाली टीस उठती हो।

महान् मनीषियों की साधना ‘‘समय’’ की तपशिला पर बैठकर ही संभव हुई है। उन्होंने जो सोचा जो सृजा है, उसके पीछे उनकी तन्मयता भरी समय साधना ही रही है। वैज्ञानिकों-आविष्कारों ने अपना मानस और समय, प्रमुखतापूर्वक निर्धारित लक्ष्य पर केंद्रित न किया होता, तो सफलता की आशा कहाँ बन पड़ती? लोक सेवियों ने अपने समयदान के सहारे एक से एक बड़े कार्य सम्पन्न कर दिखाए हैं। धन न सही, पर समय को साथ लेकर तो फरहाद जैसे साधनहीन भी अपनी साधना के बल पर बत्तीस मील लंबी नहरें खोदकर ला सकने में सफल हो सकते हैं।

धन भौतिक पुरुषार्थ और सुयोगों के संयोग का प्रतिफल है। इस स्थिति को प्राप्त कर सकना इन दिनों सभी के लिए संभव नहीं है। ऐसी दशा में पुण्य- परमार्थ के लिए धन दान को गौण मानकर, दृष्टि उस संपदा पर जमानी होगी, जो हर किसी को सृष्टा ने उदारतापूर्वक प्रदान की है वह है- समय समय की कड़ियों से जुड़कर ही जीवन शृंखला विनिर्मित होती है। उसका उदार उपयोग तभी बन पड़ता है जब प्रयोजन में गहरी रुचि हो। अरुचिकर काम चाहे कितने ही अच्छे समझे जाते हों, उनके लिए मन में इच्छा ही नहीं होती। जिस कार्य में मन नहीं लगता वह या तो प्रारंभ ही नहीं होता; या फिर आधा- अधूरा कुबड़ा भर रहकर बीच में ही छूट जाता है।

दान- परिवार में, धन के उपरांत दूसरे पदार्थ ‘‘समय’’ की ही गणना होती है। वह सर्व साधारण के लिए सुलभ भी है और उसके सदुपयोग की जाँच- पड़ताल मोटी बुद्धि से भी करते बन पड़ती है। विचारशीलों से परामर्श करने पर, उसके लिए सहज मार्गदर्शन भी मिल जाता है। स्वार्थी बहुत देर तक उसका अनुचित शोषण भी नहीं कर पाते।

ये समय ठीक ऐसा ही है। इस समय में मेरी आप लोगों में से प्रत्येक से प्रार्थना है कि आप समय का थोड़ा- सा अंश निकाल दें। हमने कितनी बार कहा और कितनी बार छापा है कि आप समयदान कीजिए, समयदान कीजिए। आपने सूर्य- ग्रहण और चन्द्र- ग्रहण के समय पर देखा है। चिल्लाते हैं, चन्द्रमा पर ग्रहण पड़ा हुआ है- दान कीजिए, दान कीजिए। इस समय में हमारी भी एक ही पुकार है, समय की भी एक ही पुकार है, महाकाल की भी एक ही पुकार है कि आप समय दीजिए, समय खर्च कीजिए।

 आप लोगों से भी मेरी यही प्रार्थना है कि लोगों की समझदारी बढ़ाने के लिये अपने समय का जितना अंश आप लगा सकते हों, उतना अंश लगायें।


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