शरीर और मन की निरोगता

 जिसके शरीर, मन व आत्मा में किसी तरह का कोई भी रोग न हो, वह स्वस्थ है, निरोग है व तन्दुरुस्त है। एक मनुष्य मोटा तगड़ा या पहलवान तो दिखाई देता है परन्तु अगर उसमें शील, लज्जा, मधुर भाषण, दृढ़ता, सरल स्वभाव, पवित्रता, सन्तोष सुहृद्भाव, विनय, क्षमा, हृदय की शुद्धता, बड़ों की सेवा, इत्यादि मानसिक तन्दुरुस्ती के गुणों का अभाव है तो उसे पूर्ण तन्दुरुस्त नहीं कहा जा सकता।

तन्दुरुस्त मन के जरिये ही अच्छे दाँत, अच्छी दृष्टि, अच्छी भूख, अच्छी नींद, ठीक शौच, चौड़ी छाती, सीधी कमर, अपनी आयु के अनुसार दूर तक बोझा ले जाने की शक्ति, बिना थके लिखाई पढ़ाई कर सकने की शक्ति, चुस्त बदन, ठीक शरीर, भार, दिल, दिमाग, फेफड़े जिगर और सन्तानोत्पादक अंगों के कार्य का ठीक होना, बुखार, खाँसी, जुकाम, कब्जी और सिर दर्द, वगैरह कभी न होकर शारीरिक तन्दुरुस्ती के श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति हो सकती है।

जब शारीरिक व मानसिक तन्दुरुस्ती प्राप्त हो गई तो फिर, आत्मिक उन्नति तो अत्यन्त ही सहज है। इसीलिए पूर्ण तन्दुरुस्ती प्राप्त करने से पहले हमें अपने मन को तन्दुरुस्त बनाने की सर्वप्रथम कोशिश करनी चाहिए। शारीरिक व आत्मिक उन्नति की जड़ ‘तन्दुरुस्त मन’ ही पर अवलम्बित है। हमारे लोक व परलोक का बनना, बिगड़ना भी एक मात्र इसी पर टिका हुआ है।


अपने सुझाव लिखे: