सफलता का गुप्त स्त्रोत-दृढ़ इच्छा शक्ति

 मनुष्य जीवन में शक्ति का बहुत बड़ा हाथ रहा है। शक्ति के बिना वह एक पग भी नहीं चल सकता, बसे अपने हर कार्य में शक्ति से काम लेना पड़ता है। यदि शक्ति उसका साथ छोड़ दे तो वह किसी काम का नहीं रहता। बलवान व्यक्ति भी शक्ति का उपासक हैं और निर्बल भी।

मनुष्य की वह शक्ति कौन सी है? इसे जानने के लिए यह समझना होगा कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य कर्म है। कर्म के बिना वह निरर्थक है। परन्तु इच्छा के बिना कर्म की उत्पत्ति नहीं हो सकती। मनुष्य का मन चाहे तभी उसमें कार्य की प्रवृत्ति होती है, इसलिए मनीषियों ने इच्छा अथवा मन को कर्म की शक्ति माना है।

जिस व्यक्ति में इच्छा शक्ति की जितनी प्रबलता हैं, वह उतना ही अधिक कार्यक्षम होता है। वरना देह कर इच्छा शक्ति का ही शासन है क्योंकि इच्छा द्वारा ही सब इन्द्रियाँ अपने कार्या में लगती है। अत्यन्त निर्बल मनुष्य भी इसके बल से बलवान बन जाते हैं।

यह अपने अधिकार की बात है कि हम इस शक्ति को अच्छे कार्य में लगाते है अथवा बुरे में। संसार में जितनी भी बुरे कार्य होते हैं वे सब इसी के द्वारा। रक्तपात, अपहरण, चोरी, द्यूत आदि सभी कर्म इच्छा शक्ति के गलत प्रयोग का ही परिणाम है। इसके बल पर श्रेष्ठ कार्य भी होते हैं, जिनमें सत्यवादिता, परोपकार, और भगवत्प्राप्ति के विभिन्न साधन भी सम्मिलित हैं।

बड़े- बड़े तपस्वियों की साधनाओं में इच्छाशक्ति का ही हाथ था। बड़े-बड़े संग्राम में विजयश्री प्राप्त कराने का श्रेय भी इच्छाशक्ति को ही रहा हैं। बड़े बड़े हत्याकांडों में जो वीभत्सता उत्पन्न हुई वह सब इच्छाशक्ति के कारण ही हुई। आप इसे कार्य में लगावेंगे, वह उसी में लग जायेगी। उसी को पूर्ण करने का प्रयत्न करेगी।

अग्नि में जो दाहक शक्ति है उसका उपयोग जन-कल्याण के लिए भी हो सकता है और विनाश के लिए भी। यज्ञों द्वारा अग्नि की उपयोगिता जन-कल्याण में सहायक होती है। अग्नि के द्वारा ही हम परिपक्व एवं स्वादिष्ट भोजन प्राप्त करते है। अग्नि ही हमें प्रकाश दिखाती है। परन्तु इसके विपरीत वही अग्नि एटम आदि विभिन्न कर्मों के द्वारा भीषण जन-संहार करने में भी समर्थ है। चोर, डाकुओं ने भी अब तक अनेक गाँवों को उसी अग्नि की दाहक शक्ति से जला ढाला। जैसे अग्नि का प्रयोग अच्छे और सुनियोजित के लिए हो सकता हैं। वैसे ही इच्छाशक्ति का प्रयोग भी दोनों प्रकार से हो सकता है।

इच्छा शक्ति के बल पर मनुष्य में बड़े बड़े आश्चर्यजनक कार्य कर डाले। अनेक सतियों ने चिता आरोहण द्वारा अपने प्राण दे डाले, राजपूतों की वीर महिलाओं ने जौहर द्वारा हँसते हँसते अपने को बलिदान कर दिया। यह सब इच्छाशक्ति के ही बल पर संभव हुआ।

आप किसी प्रतिज्ञा की पूर्ति में कटिबद्ध हो जाय तो यह भी आपकी इच्छा शक्ति की ही प्रेरणा होगी। इसी के बल पर निर्धन ब्राह्मण चाणक्य ने भगधाधिपति महानन्द का राज्य उलट दिया, इसी के द्वारा परशुराम ने इस पृथिवी को इक्कीस बार अन्यायी राजाओं से विहीन कर डाला और इसी के प्रभाव से रावण ने सीता हरण किया, यद्यपि उसके गलत प्रयोग के कारण वह स्वयं ही नष्ट हो गया। इस प्रकार के अन्य अनगिनत उदाहरण प्राचीन और नवीन इतिहास में प्राप्त हो सकते हैं।

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