आत्मबोध

 प्रात:काल आँख खुलते ही नया जन्म - आत्मबोध:

प्रज्ञायोग की प्रथम साधना को आत्मबोध कहते हैं। आँख खुलते ही यह भावना करनी चाहिये किआज अपना नया जन्म हुआ। एक दिन ही जीना है। रात्रि को मरण की गोद में चले जाना है। इस अवधि का सर्वोत्तम उपयोग करना ही जीवन साधना का महान लक्ष्य है। यही अपना परीक्षा क्रम है और उसी में भविष्य की सारी सम्भावना सन्निहित है।

मनुष्य जन्म जीवधारी के लिये सबसे बड़ा सौभाग्य है। इसका सदुपयोग बन पड़ना ही किसी कीउच्चस्तरीय बुद्धिमत्ता का प्रमाण- परिचय है। उठते ही यह विचार करना चाहिये कि आज के एक दिन को सम्पूर्ण जीवन माना जाये जिनके लिये इसे दिया गया है। इस आधार पर दिनभर की दिनचर्या इसी समय निर्धारित की जाये। चिन्तन, चरित्र, और व्यवहार की वह रूपरेखा विनिर्मित की जाये जिसे सतर्कतापूर्वक पूरी करने पर यह माना जा सके कि आज का दिन एक बहुमूल्य जन्म पूरी तरह सार्थक हुआ। इस चिन्तन के सभी पक्षों पर विचार करने में जितना अधिक समय लगे उतना कम है, पर इसे नित्यप्रति, नियमित रूप से करते रहने पर पन्द्रह मिनट भी पर्याप्त हो सकते हैं। एक दिन की छूटी बात को अगले दिन पूरा किया जा सकता है।

अपने सुझाव लिखे: