तत्त्व बोध

रात्रि को सोते समय नित्य मरण - तत्त्व बोध

दूसरी संध्या रात को सोते समय पूरी की जाती है, उसमें यह माना जाना चाहिये कि अब मृत्यु की गोद में जाया जा रहा है। भगवान् के दरबार में जवाब देना होगा कि आज के समय का, एक दिन के जीवन का किस प्रकार सदुपयोग बन पड़ा? इसके लिये दिनभर के समयानुसार क्रिया- कलापों और विचारों के उतार- चढ़ावों की समीक्षा की जानी चाहिये। उसके उद्देश्य और स्तर को निष्पक्ष होकर परखना चाहिये तथा देखना चाहिये कि कितना उचित बन पड़ा और कितना उसमें भूल या विकृति होती रही। जो सही हुआ उसके लिये अपनी प्रशंसा की जाये और जहाँ जो भूल हुई हो उसकी भरपाई अगले दिन करने की बात सोची जाये। अगले दिन के क्रिया कलाप में आज की कमी को पूरा करने की बात भी जोड़ ली जाये।

मृत्यु अवश्यम्भावी है। लोग उसे भूल जाते हैं और बाल क्रीड़ा की तरह महत्त्वहीन कार्यों में जीवनबिता देते हैं। यदि यह ध्यान रखा जाये कि चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के उपरान्त जो अलभ्य हस्तगत हुआ है, उसे इस प्रकार व्यतीत किया जाये जिससे भविष्य उज्ज्वल बने। देवमानव स्तर तक पहुँचाने की आशा बँधे। दूसरों को अनुकरण की प्रेरणा मिले।

रात्रि को जिस प्रकार निश्चिंततापूर्वक सोया जाता है, उसी प्रकार मरणोत्तर काल से लेकर पुनर्जन्मकी मध्यावधि में भी ऐसी ही शान्ति रह सकती है। इसकी तैयारी इन्हीं दिनों करनी चाहिये। हँसी- खुशी से दिन बीतता हो तो रात्रि को गहरी नींद आती है। दिन यदि शान्तिपूर्वक गुजारा जाये- श्रेष्ठता के साथ जुड़ा रहे तो मरणोत्तर विश्राम काल में नरक नहीं भुगतान पड़ेगा। स्वर्ग जैसी शान्ति का रसास्वादन मिलता रहेगा। इस प्रक्रिया को तत्त्व बोध कहा गया है।



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