भारतीय आध्यात्मिकता

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।

संस्कृति का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो ।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।। परम पूज्य गुरुदेव ने भारतीय संस्कृति की कुछ मान्यताओं पर बड़ी गहराई से प्रकाश डाला है व प्रत्येक का तथ्य सम्मत विवेचन विज्ञान की- शास्त्रों की सम्मति के साथ प्रस्तुत किया है, पुनर्जन्म में विश्वास, स्वर्ग और नरक कहाँ है, कैसे हैं, ब्राह्मणत्व क्या है- कैसे अर्जित किया जाता है- वर्णाश्रम धर्म परम्परा क्यों व किस रूप में ऋषियों ने स्थापित की, जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म- अर्थ का आधार क्या है तथा आस्तिकता व कर्मफल के सिद्धान्तों को संस्कृति का मूल प्राण क्यों माना जाता है, पूज्यवर ने बड़ी सुगम शैली में यह सब समझाने का प्रयास किया है ।। आपद धर्म- युगधर्म तथा यज्ञ की व्याख्या भी इसमें सशक्त रूप में आयी है ।। यद्यपि ये सभी विस्तार से अलग- अलग खण्डों में भी प्रसंगानुसार आये हैं, किंतु यहाँ उनका संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में विवेचन है ।।

गीता में योग की परिभाषा योगःकर्मसु कौशलम् (2-50) की गयी है । दूसरी परिभाषा समत्वं योग उच्यते(2-48) है । कर्म की कुशलता और समता को इन परिभाषाओं में योग बताया गया है । पातंजलि योग दर्शन में योगश्चिय वृत्ति निरोधः (1-1) चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा गया... See More

साधना स्वर्ण जयंती वर्ष में हम आपको गायत्री उपासना के साथ-साथ विशेष रूप से जो शिक्षण देते हैं, वह ध्यान का शिक्षण है। उपासनाएँ दो हैं-नाम और रूप की उपासनाएँ। राम और रूप के बिना उपासना हो नहीं सकती। यह दो यूनीवर्सल उपासनाएँ हैं। किसी भी मजहब में चले जाइए... See More

मनुष्यों के सब समय पूरी बात कहना या लिखना सम्भव नहीं होता ।। हमारे जीवन में बहुत से भाव इस प्रकार सूचित करने आवश्यक होते हैं, जिन्हें दूर से देखकर समझा जा सके ।। बहुत समय और स्थल ऐसे होते हैं जहाँ अपने और दूसरों के लिए पहिचानने का चिह्न... See More

हिन्दू धर्म पर एक सबसे बड़ा आक्षेप यह लगाया जाता रहा है कि इसमें अनगिनत देवी- देवता हैं ।। इतना पुराना धर्म होते हुए भी इनमें इस बात पर सहमति नहीं है कि किसे मानें, किसे न मानें? वैदिक काल से लेकर पुराणों तक तथा अवतारी लीला पुरुषों तक अनगिनत... See More

 भारत की आध्यात्मिकता में ही भारतीय संस्कृति का निवास है यही भारतीयता है, इसीलिये ही भारतीय संस्कृति एकमात्र आध्यात्मिक, अति मानसिक- अतिबौद्धिक संस्कृति है। जिस प्रकार परमात्मा सृष्टि के सभी प्राणियों के कल्याण का विधान करता हुआ सृष्टि, रक्षा और संहार करता है-उसी भाँति भारतीय संस्कृति भी सदा सद्गुणों की... See More



अपने सुझाव लिखे: