सन्तान सुख देने वाली उपासना

जिनकी सन्तान बीमार रहती है, अल्प आयु में ही मर जाती हैं, केवल पुत्र या कन्यायें ही होती हैं, गर्भपात हो जाते हैं, गर्भ स्थापित ही नहीं होता, बन्ध्यादोष लगा हुआ है अथवा सन्तान दीर्घसूत्री, आलसी, मन्दबुद्धि, दुर्गुणी, आज्ञा उल्लंघनकारी, कटुभाषी या कुमार्गगामी है, वे वेदमाता गायत्री की शरण में जाकर इन कष्टों से छुटकारा पा सकती हैं। हमारे सामने ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिन स्त्रियों ने वेदमाता गायत्री के चरणों में अपना आँचल फैलाकर सन्तान- सुख माँगा है, उन्हें भगवती ने प्रसन्नतापूर्वक दिया है। माता के भण्डार में किसी वस्तु की कमी नहीं है। उनकी कृपा को पाकर मनुष्य दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु प्राप्त कर सकता है। कोई वस्तु ऐसी नहीं, जो माता की कृपा से प्राप्त न हो सकती हो, फिर सन्तान- सुख जैसी साधारण बात की उपलब्धि में कोई बड़ी अड़चन नहीं हो सकती।

जो महिलायें गर्भवती हैं, वे प्रात: सूर्योदय से पूर्व या रात्रि को सूर्य अस्त के पश्चात् अपने गर्भ में गायत्री के सूर्य सदृश प्रचण्ड तेज का ध्यान किया करें और मन ही मन गायत्री जपें, तो उनका बालक तेजस्वी, बुद्धिमान्, चतुर, दीर्घजीवी तथा तपस्वी होता है।

प्रात:काल कटि प्रदेश में भीगे वस्त्र रखकर शान्त चित्त से ध्यानावस्थित होना चाहिये और अपने योनि मार्ग में होकर गर्भाशय तक पहुँचता हुआ गायत्री का प्रकाश सूर्य किरणों जैसा ध्यान करना चाहिये। नेत्र बन्द रहें। यह साधना शीघ्र गर्भ स्थापित करने वाली है। कुन्ती ने इस साधना के बल से गायत्री के दक्षिण भाग (सूर्य भगवान्) को आकर्षित करके कुमारी अवस्था में ही कर्ण को जन्म दिया था। यह साधना कुमारी कन्याओं को नहीं करनी चाहिये।
साधना से उठकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिये और अघ्र्य से बचा हुआ एक चुल्लू जल स्वयं पीना चाहिये। इस प्रयोग से बन्ध्यायें गर्भ धारण करती हैं, जिनके बच्चे मर जाते हैं या गर्भपात हो जाता है, उनका यह कष्ट मिटकर सन्तोषदायी सन्तान उत्पन्न होती है।

रोगी, कुबुद्धि, आलसी, चिड़चिड़े बालकों को गोद में लेकर मातायें हंसवाहिनी, गुलाबी कमल पुष्पों से लदी हुई, शंख, चक्र हाथ में लिये गायत्री का ध्यान करें और मन ही मन जप करें। माता के जप का प्रभाव गोदी में लिये बालक पर होता है और उसके शरीर तथा मस्तिष्क में आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। छोटा बच्चा हो तो इस साधना के समय माता दूध पिलाती रहे, बड़ा बच्चा हो तो उसके शरीर पर हाथ फिराती रहे। बच्चों की शुभकामना के लिये गुरुवार का व्रत उपयोगी है। साधना से उठकर जल का अघ्र्य सूर्य को चढ़ाएँ और पीछे बचा हुआ थोड़ा- सा जल बच्चों पर मार्जन की तरह छिडक़ दें।



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