त्रिपदा गायत्री

Question: Why is Gayatri known as Tripada- Trinity ? 


Ans:

आंकाःर स्तत्परं ब्रहा्र गायत्री स्यात्तदक्षरम्। एवं मन्त्रों महायोगः साक्षात्सार उदाह्रतः।। योधीतेहन्यमाने तां गायत्री वेदमातरम्। विज्ञायार्थ ब्रहा्रचारी स याति परमाड;तिम्।। न गायन्न्याः परं जप्यमेताद्विज्ञानमुच्यंते। -औशनस स्मृति 158 से 161
सृष्टि के आरम्भ में भूः, भुवः, स्वः यह तीन व्याहृतियाँ उत्पन्न हुई। उससे काल पुरुष, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सत- रज तम उत्पन्न हुए। इसके पश्चात् गायत्री मंत्र के समस्त अक्षर। यह गायत्री महायोग है। समस्त साधनाओं का सार है जो इस महामंत्र की उपासना अर्थ समझते हुए श्रद्धापूर्वक करता है, ब्रह्मचर्य पूर्वक रहता है सो परम गति पाता है। यह परम विज्ञान है। इससे श्रेष्ठ मंत्र और कोई नहीं है। तपस्वी को ओजस्वी, तेजस्वी और मनस्वी भी होना चाहिए। एकाकी अतिवादी से लाभ कम और हानि अधिक है। आगम और निगम, योग और तप मिलकर चलें तभी कल्याण है। असुरों ने भौतिक पक्ष तंत्र अपनाया और आत्म पक्ष से मुँह मोड़ लिया फलतः वे समर्थ तो बने पर अपने और दूसरों के लिए अभिशाप ही सिद्ध हुए। देवता जब एकाकी सात्विकता तक सीमित हो गये तो उन्हें अपना वर्चस्व गँवाना पडा़ और असुर उन पर हावी हो गये। परित्राण का मार्ग उन्हें तभी मिला जब शक्ति की उपेक्षा छोड़कर उसकी आराधना में निरत हुए। भगवती के अवतरण की कथा, गाथा का जिन्हें परिचय है वे जानते हैं कि महिषासुर, मधुकैटभ, शुंभ, निशुंभ, रक्तबीज, जैसे संकटों से पार होना तेजस्विता के प्रतीक सतक्त्ता का अवलम्बन मिलने पर ही सम्भव हो पाया था।

संसार के समस्त दुःखों के तीन प्रधान कारण हैं-
(1)अज्ञान
(2) अभाव
(3) अशक्ति ।।

सत्, रज, तम, की त्रिविधि प्रकृति से मनुष्य का निर्माण हुआ है। वस्तुतः सत्ता दो की है ।। सत् और तम की ।। रज की उत्पत्ति तो दोनों की सम्मिश्रण से होती है ।। दुःखों के कारणों में भी प्रधान दो ही हैं- अज्ञान और अशक्ति ।। अभाव तो उनकी परिणति है ।। गायत्री की तीन शक्ति धाराएँ हैं- ह्रीं, श्रीं और क्लीं ।। ह्रीं सद्ज्ञान की, श्रीं वैभव की और क्लीं शक्ति की बल प्रतीक है ।।


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