Restrictions on Gayatri worship

Question:  गायत्री में सदाशयता की रचनात्मक स्थापनाएँ हैं। उन्हें जानने-समझने का सबको समान अधिकार है ऐसे पवित्र प्रेरणायुक्त उपदेश को उच्चारणपूर्वक कहने-सुनने में भला क्या हानि हो सकती है?


Ans:

पर्दे के पीछे व्यभिचार, अनाचार जैसे कुकर्म ही किये जाते हैं। षड्यन्त्रों में काना-फूसी होती है। किसी को पता न चलने देने की बात वहीं सोची जाती है जहाँ कोई कुचक्र रचा गया हो। सद्ज्ञान का तो उच्च स्वर से उच्चारण होना चाहिए। कीर्तन-आरती जैसे धर्म कृत्यों में वैसा होता भी है।

तन्त्र विधान की कुछ विधियाँ गुप्त रखी गयी हैं। ताकि अनधिकारी लोग उसका दुरुपयोग करके हानिकार परिस्थितियाँ उत्पन्न न करने पाएँ। मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन जैसे आक्रामक अभिचारों के विधि-विधान तथा तन्त्र को इसी दृष्टि से कीलित या गोपनीय रखा गया है। एक तरह से इन्हें सौम्य साधना का स्वरूप न मानकर इन पर ‘बैन’ लगा दिया गया है ताकि लोग भ्रान्तिवश इनमें भटकने न लगें। वैदिक प्रक्रियाओं में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं। गायत्री वेदमन्त्र है। उसका नामकरण ही “गाने वाले का त्राण करने वाली” के रूप में हुआ है। फिर उसे मुँह से न बोलने, गुप्त रखने, चुप रहने, कान में कहने जैसा कथन सर्वथा उपहासास्पद है। ऐसा वे लोग कहते हैं जो तन्त्र और वेद में अंतर नहीं समझते। गायत्री मन्त्र का उच्चारण व्यापक विस्तृत होने से उसकी तरंगें वायु मण्डल में फैलती हैं और जहाँ तक वे पहुँचती हैं, वहाँ लाभदायक परिस्थितियाँ ही उत्पन्न करती हैं। उच्चारण न करने पर तो उस लाभ से सभी वंचित रहेंगे।


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